"राजनीति ही हमारा पेशा है।"

 एक बार वियतनाम के राष्ट्रपति 

हो-ची-मिन्ह भारत आए थे। 

भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा -

" आपलोग क्या करते हैं ?"


इनलोगों ने कहा - " हमलोग राजनीति करते हैं ।"


वे समझ नहीं सके इस उत्तर को। 

उन्होंने दुबारा पूछा-

"मेरा मतलब, आपका पेशा क्या है?"


इनलोगों ने कहा - "राजनीति ही हमारा पेशा है।"


हो-ची मिन्ह तनिक झुंझलाए, बोला - 

"शायद आपलोग मेरा मतलब नहीं समझ रहे। 

राजनीति तो मैं भी करता हूँ ; 

लेकिन पेशे से मैं किसान हूँ , 

खेती करता हूँ। खेती से मेरी आजीविका चलती है। 

सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ। 

दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए 

अपना दायित्व निभाता हूँ ।"


भारतीय प्रतिनिधिमंडल निरुत्तर हो गया

कोई जबाब नहीं था उनके पास।

जब हो-ची-मिन्ह ने दुबारा वही वही बातें पूछी तो प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने झेंपते हुए कहा - "राजनीति करना ही हम सबों का पेशा है।"

स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर ही न था। 


बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका राजनीति से चलती थी। आज यह संख्या करोड़ों में पहुंच चुकी है। इनका अपना एक अप्रत्यक्ष समूह है, जो जनता के सामने एक दूसरे का विरोध करते हुए नाटक करेंगे उन पर आरोप लगाएंगे उनकी बुराई करेंगे पर बड़ी-बड़ी पार्टियों में मुस्कुराते हुए एक दूसरे से गले मिलते हैं, जिनको खुद की पेंशन चाहिए, खुद का डीए बढ़ाना है, खुद का भत्ता बढ़ाना है तोमेज थपथपा कर सहमति जताएंगे। पर जब कहीं जनता के अथवा कर्मचारियों के फायदे की बात होगी तो सबको सांप सूंघ जाएगा। नई भर्तियों पर बेरोजगारी पर कर्मचारियों के टीए डीए पर पेंशन पर इन सब पर कभी बहस नहीं होगी ना कोई जवाबदेही होगी और अगर बात भी होगी तो केवल एक दूसरे को कोसने भर की


कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था , डाक्टरों को लगातार कई महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था , तब पुर्तगाल की एक डॉक्टरनी ने खीजकर कहा था -

"रोनाल्डो के पास जाओ न , 

जिसे तुम करोड़ों डॉलर देते हो।

मैं तो कुछ हजार डॉलर ही पाती हूँ।"


मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों के आदर्श वैज्ञानिक , शोधार्थी , शिक्षाशास्त्री आदि न होकर अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी होंगे , उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए ,देश की उन्नत्ति कभी नहीं होगी। सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, रणनीतिक रूप से देश पिछड़ा ही रहेगा हमेशा। ऐसे देश की एकता और अखंडता हमेशा खतरे में रहेगी।


जिस देश में अनावश्यक और अप्रासंगिक क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ता रहेगा, वह देश दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाएगा। 


देश में भ्रष्टाचारी व देशद्रोहियों की संख्या बढ़ती रहेगी, ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे व राष्ट्रवादी लोग कठिन जीवन जीने को विवश होंगे।


 सभी क्षेत्रों में कुछ अच्छे व्यक्ति भी होते हैं। उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा ।


आवश्यकता है हम प्रतिभाशाली,ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समाजसेवी, जुझारू, देशभक्त, राष्ट्रवादी, वीर लोगों को अपना आदर्श बनाएं।


नाचने-गानेवाले, ड्रगिस्ट, लम्पट, गुंडे-मवाली, भाई-भतीजा-जातिवाद और दुष्ट देशद्रोहियों को जलील करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से बॉयकॉट करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी हमें।

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