Posts

Showing posts from September, 2017

मंदिर ,आदिवासी और गरीब

एक बार एक गांव में *मंदिर* का काम चल रहा था, मंदिर *आदिवासी* और *गरीब* लोग बना रहे थे, एक *आदिवासी बड़ी मूर्ति* बना रहा था! कुछ दिन बाद *मंदिर* बनकर तैयार हो गया, मंदिर में *पुजारियो* द्वारा *हवन कार्य मूर्ति स्थापना* और *मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा* आदि कार्य सम्पन्न हो गया, अगले दिन *मन्दिर दर्शन* के लिए खोल दिया। वह *मूर्तिकार* जिसने मूर्ति बनाई वो भी *दर्शन* को आया था । वह ख़ुसी के मारे बिना *चप्पल* उतारे *मन्दिर में प्रवेश* कर गया । पुजारी उस पर *क्रोधित* हुआ और कहा - 'मुर्ख तू जाहिल है क्या *चप्पल* पहनकर मन्दिर में नही आते जा चप्पल *बहार* उतार के आ '! आदिवासी बोला -' *पुजारी जी* जब में चप्पल पहनकर मूर्ति बना रहा था और चप्पलों से उस पर चढ़ जाता था तब किसी ने मना नही किया :'! पुजारी बोला -" बेबकूफ हम ने अपने मन्त्रो से *मूर्ति में प्राण* डाल दिए है समझ गया ", बेचारा *आदिवासी चुपचाप* अपने घर चला गया, कुछ दिन बाद वह दोवारा मन्दिर गया तो देखा की मन्दिर में ताला लगा था, उसको किसी ने बताया की *पुजारी जी* का *बेटा* खत्म

एक कटोरी दही

*एक कटोरी दही* जब एक शख्स लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी। पुत्र जब वयस्क हुआ तो पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी अपने तो कभी दोस्तों के आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद वह ओर अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया। पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दोहपर में खाना खा रहे थे, पुत्र भी लंच करने ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। थोडी देर बाद पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया। कुछ दिन बाद पुत्र ने अपने पिताजी से कहा- ‘‘पापा आज आपको कोर्ट चलना है, आज आपका

क्रोध के दो मिनट

😡क्रोध के दो मिनट😡 एक युवक ने विवाह के दो साल  बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही । पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी  गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया । परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया । सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया । उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था । सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान  की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था  पर कोई लेने को तैयार नहीं है । सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !' उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई । उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान  सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था.. लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी । व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सू