राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के लाल

 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के लाल जमीन से जुड़े नेता  सादगी और सिंद्धान्तों की मिसाल लालबहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं।

 गांधी एक दर्शन थे एक संभ्यता थे एक संस्कृति थे जी हमको जीना सीखा गए। उनके विचार उनके सिद्धान्त उनकी सादगी पूर्ण जीवन शैली नजीर है और अनुकरणीय है।

उनका  सत्य  और अहिंसा का प्रयोग लोकतंत्र की नींव को वह मजबूती दे गया जिस पर लोकतंत्र आज टिका है।

 गांधी मर कर भी अमर हो गए आज भी हमारे दिलों में जिंदा है जबकि कायर नपुंसक भीरु हत्यारा गोडसे जीवन पर्यन्त घृणा का पात्र बना रहेगा।

महात्मा गांधी अमर रहे  उनकी कीर्ति युगों युगों तक अक्षय रहे।

इतिहास की रेडिमेड समझ रखने वालों को लगता है कि गांधी की वजह से भारत का विभाजन हुआ!

यह बात आपकी समझ से बाहर है कि कई पैमानों पर पहले से टुकड़ों-टुकड़ों में बंटा भारत, गांधी के जीवन काल तक गांधी के ही सरल लेकिन विराट व्यक्तित्व की छाया में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक एक अदृश्य धागे में बंधा हुआ था!

गांधी से जिनको विरोध है वो यह क्यों नहीं बताते कि किस कर्म और तपस्या के बल पर गांधी ने 'चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर' का अतुलनीय विश्वास और नैतिक बल पैदा किया था,जिसके नाते उनसे यह अपेक्षा भी किया जा सकता था/है कि वे जो निर्णय लेते वो भारत की नियति होती???....क्या उन्होंने भारत की राजनैतिक आस्था विरासत में पाई थी??...क्या उनके पास किसी प्रकार की लोकतांत्रिक सत्ता का बल था??....क्या किया था गांधी ने जो कि उनसे यह अपेक्षा पाली जा सकती थी कि वो अपने निर्णय से भारत की तकदीर बदल देते??....उनके जो भी विरोधी कुनबे के लोग थे क्या वो उनके सापेक्ष हजारवें हिस्से के भी बराबर जनसमर्थन की नैतिकता का बल हासिल कर पाए थे??....अगर नहीं,तो गांधी से वैसी अपेक्षा पालने वाले वो कौन होते हैं??....गांधी को आपने क्या दिया था जो आप गांधी से कोई अपेक्षा पाल सकते थे/हैं?....क्या गांधी ने आपसे जनादेश मांगा था..सत्ता मांगी थी??

पर आप नहीं समझेंगे!...उस जमाने में विलायत से वकालत की पढ़ाई किये हुए शख्स ने भारतीय जन से तादात्म्य स्थापित करने के लिए किस तप के बल पर जीवन भर अपना शरीर एक ही धोती से ढकने का अदम्य संकल्प ले,जन सामान्य का कैसा विश्वास हासिल किया होगा!....कुष्ठ आश्रम में रोगियों की सेवा करते हुए अपनी बहन के भी व्यवहार में विचलन पाने पर गांधी ने उन्हें आश्रम से बाहर कर दिया था!....आप गांधी का विरोध कर रहे हैं कि गांधी ने नेहरू को आगे किया??....आप में तत्कालीन जटिल भारतीय परिस्थितियों को समझने का माद्दा नहीं है बंधु!...गांधी ने अपने बेटे या बहू को तो सत्ता के लिए आगे नहीं किया!

आप मानवता के प्रति आइंस्टीन से ज्यादा संजीदा और टैगोर,तिलक,सुभाष से बड़े देशभक्त और समझदार हो गए??

गांधी हर जगह सही नहीं थे। कोई भी नहीं होता। पर गोडसे सिर्फ गलत थे। वैचारिक असहमति पर जान ले लेने का रास्ता अख्तियार कर लेने वाला इंसान देशभक्त नहीं हो सकता! यदि गोडसे को इतनी दिक्कत थी तो क्यों नहीं किसी नैतिक तप के बल पर भारतीय जन से वह विश्वास हासिल कर लिया कि जहां अपने निर्णय से भारत की नियति को बदल देता!!

इन उन्माद के स्तर की खुद की देशभक्ति दूसरे से अपेक्षा के दम पर???

एक देश के तौर पर हमने गांधी को क्या दिया जो उनसे अपने मनमुताबिक इतनी ऊंची ऊंची अपेक्षाएं पाल लीं??

यदि देश के प्रति आप की भक्ति गंभीर थी तो गांधी के सापेक्ष वह नैतिक विश्वास का बल आपने खुद क्यों नहीं पैदा कर लिया!

ऐसे गांधी की तुलना उस गोडसे से जिसके जीवन काल की कुल जमा देशभक्ति का परिचय सिर्फ इतना है कि उन्हीने गांधी की हत्या की??

गोडसे यदि इतने बड़े देशभक्त थे कि उसके बराबर उनसे गांधी की हत्या का अपराध क्षम्य मान लिया जाना चाहिए तो गोडसे की देशभक्ति के बाकी के आख्यान कहाँ हैं??

आप यह नहीं समझेंगे कि भारत के अनगिनत दलित और पीड़ित,कुंठित जन जब भारत के समाज से अपना विलगन महसूस कर रहे थे और भेदभाव,छुआछूत आदि सामाजिक दुर्व्यवस्था के नाते भारत एक होकर भी खंड खंड में बंटा हुआ था तो गाँधी नाम के व्यक्तित्व ने अपनी सेवा तपस्या से उनमें यह विश्वास पैदा किया कि वास्तव में भारत के समाज के वो भी एक अटूट हिस्सा हैं और उनका भी यहां कुछ है!....आप गाँधी को भारत के दो टुकड़ों के लिए जिम्मेदार मानते हैं तो आपको गांधी को भारत के अनगिनत टुकड़ों को एक धागे में बांधे रहने के लिए भी जिम्मेदार मानना पड़ेगा!

'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी' आपके लिए एक लतीफ़ा भर होगा पर कभी महसूस कर के देखिएगा इसके दार्शनिक गहराई को कि किसी दैत्याकार ताकत के सामने असहाय और मजबूर व्यक्ति को कौन सा दर्शन ताकत दे सकेगा जिसके दम पर वह निहत्थे उस शक्ति से टकरा सके!....मजबूरी ही गांधी दर्शन है,बशर्ते आप गांधी दर्शन समझने की योग्यता रखते हैं!

भारत ही नहीं,दुनिया भर के अनगिनत मजबूर,गांधी दर्शन में अपनी ताकत देख सकते हैं! इसलिए मजबूरी का नाम महात्मा गांधी,एक लतीफ़ा भर नहीं है। यह मजबूरी का शक्ति-दर्शन है! 

साहस और मूर्खता में जो महीन अंतर होता है,उसी महीनी में खोजने पर आपको गांधी दर्शन का अहिंसात्मक लेकिन साहसपूर्ण तत्व मिल सकेगा!

यह समझने की कोशिश करिएगा कि राजनीति के पटल पर हमें बहुत नेता मिले पर गाँधी के बाद हम सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए कोई एक नेता नहीं पैदा कर पाए।

 हमारे सम्पूर्ण समाज का कोई एक अगुआ नहीं पैदा हुआ जिसने राजनीति से इतर राजनीति कोनियंत्रित करने का नैतिक बल पैदा करने का सामर्थ्य पैदा किया हुआ हो! गांधी बंटवारे के नहीं,एकीकरण के प्रतीक थे ,हैं और रहेंगे!

भारत के खंड खंड में बंटे समाज को अपने सेवा दर्शन से एक सूत्र में बांधने का सामर्थ्य गांधी में ही था जो आज भी उन्हें बिना कुछ दिए हम उनसे अपेक्षा पाल पा रहे हैं कि उन्होंने इसके बजाय वो किया होता तो ये हो गया होता!!

 साभार फेसबुक बाल से

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