खुदा की बंदगी

साधारण युवती सिखा गई अकबर को ‘खुदा की बंदगी’

एक बार बादशाह अकबर जंगल में घूमने के लिए निकलें। रास्ते में चलते-चलते नमाज का वक्त हुआ। बादशाह ने दरी बिछाकर नमाज पढना शुरु किया। इतने में एक युवती अपने पतिदेव को ढूंढती हुई उधर से निकली। उसका ध्यान दरी पर नहीं होने से वह उस पर पैर रखकर निकल गई।

बादशाह ने देखा तो वे गुस्सा हो उठे। वे बोले-क्या तुम्हें यह दिखाई नहीं दिया की मैं नमाज पढ रहा हूं? मैं खुद की बंदगी में लीन था, यह देखते हुए भी तुम मेरी दरी पर पैर रखकर चली गईं। युवती ने यह बात सुनी, तो जवाब मे उसने एक दोहा पढा-

“नर राची सूझी नहीं, तुम कस लख्यों सुजान। पढि कुरान बौरे भयो, नहीं राच्यौ रहमान॥”

मैं तो अपने प्रियतम की खोज मैं मग्न थी, इसलिए मेरा ध्यान आपकी ओर नहीं गया, मगर आप तो भगवान की भक्ति में लीन थे, फिर भला आपने मुझे कैसे देख लिया। लग्ता है आपका ध्यान नमाज की ओर नहीं, मेरी ओर था जबकि मेरा ध्यान मेरे प्रिय में होने से आपकी तरफ नही था।

युवती की बात सुनकर अकबर ने कहा-अब वह नमाज पढते समय अपना पूरा खयाल खुदा में रखेगा।






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